एक साल में दोगुनी बढ़ गई गंधर्वराज की किमतें
प्रजापति मंथन : उज्जैन / म.प्र. गधो को गधा न समझें क्योंकि एक साल में ही उनकी कीमतों में दोगुनी बढ़ोतरी हो गई है। स्थानीय पूछपरख के अलावा महाराष्ट्र में भी उनकी खासी मांग है। यही कारण है कि बडी संख्या में महाराष्ट्र के व्यापिरयों ने कार्तिक मेला शुरू होने से पहले ही यहां डेरा डाल दिया । उनका कहना है कि गौरांग नस्ल के गधों की मांग सबसे ज्यादा है। उन्हे हर कीमत पर लेने के लिए यहां आते है। पिछले साल भी आए थे। नांदेड, महाराष्ट्र से आए सुभाषराव जाधव, बालाजी संभाजी ने कहा–मशीनी युग होने के बावजूद गधों की मांग बढी है। इनका उपयोग ईंट–भट्टों निर्माण सामग्री को ढोने और संकरी गलियों में निर्माण सामग्री पहुंचाने के लिए किया जाता है। इन्हे सालभर उपयोगी माना जाता है। पिछले साल गौरांग नस्ल के गधे की खरीद–फ रोख्त चार से छह हजार रूपए मेंहो गई थी । लेकिन इस बार शुरूआत में ही इसके 9 से 10 हजार रूपए बताए जा गए। मेले में हर साल तीन से चार हजार गधे लाए जाते है। साथ ही देशभर के कोने से तीन सौ से चार सौ व्यापारी भी भागीदारी करते है। इससे पता चलता है कि इनकी उपयोगिता अब भी बनी हुई है। कार्तिक मेले के चार दिन...