कलम की ताकत को पहचाने प्रजापति समाज
प्रजापति समाज के द्वारा प्रारम्भ से ही कलम की ताकत को अनदेखा किया जाता रहा है और आज भी किया जा रहा है। लेकिन इसके कईं गंभीर प्ररिणाम भी समाज को भुगतने पड़ रहे है। आरम्भ से ही कुम्हार समाज की कला के उपर को मजबूत पकड़ रही है लेकिन कलम की ओर ज्यादा ध्यान नहीं रहा। इसी का नतीजा है कि आज कुम्हार समाज का पुरातन इतिहास नाम मात्र के रूप में ही उपलब्ध है। बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा भी समाज के साथ भेदभाव करते हुए समाज के इतिहास को ज्यादा अहमियत नहीं दी गई। जिससे आज समाज की गौरव गाथाओं का वर्णन बहुत कम ही पड़ने को मिलता है।
वर्तमान समय में भी कुम्हार प्रजापति समाज के द्वारा कलम की ताकत को अनदेखा किया जा रहा है। आज जबकि तकनीक का युग है और समाज तरक्की की और बढ़ रहा है फिर भी साहित्य और साहित्य सृजन से जुड़ी हुई विधाओं की और ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा है। जिससे आने वाली पीढ़ी समाज के इतिहास और साहित्य से कोसों दूर रहेगी। आज समाज के देशभर में सैंकड़ों की संख्या में संगठन और संस्थाऐं संचालित है जो कहने में तो समाज के उत्थान के लिए कार्य कर रही है लेकिन धरातल पर कोई ठोस कार्य नहीं किया जा रहा।
आज देश भर में समाज की सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए गिनी चुनी पत्र-पत्रिकाऐं बची है जो भी समाज के लोगों की उपेक्षा और ध्यान नहीं देने के चलते दम तोड़ती नजर आ रही है। अगर ऐसा ही रहा तो समाज की बातों को उठाने और समाज की गतिविधियों को एक-दूसरे तक पहुंचाने के लिए हमारे पास कुछ नहीं बचेगा। आज सोशल मीडिया का जमाना है लेकिन जब बात समाज के साहित्य और समाज के इतिहास की हो तो वहां सोशल मीडिया काम नहीं आता। आज समाज की पत्र-पत्रिकाओं में जो छप रहा है वहीं आने वाली पीढ़ी के लिए साक्ष्य के रूप में रहेगा। फेसबुक और व्हासएप्प पर डाला गया डाटा एक निश्चित समय बाद हट जाता है या डिलीट कर दिया जाता है लेकिन जो एक बार प्रिंट हो गया और लिपिबद्ध हो गया। उसे आसानी से डिलीट या हटाया नहीं जा सकता।
आज लोगों को लगता है कि हमें पत्र-पत्रिकाओं की क्या जरूरत है? या हमें तो पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने का समय ही नहीं मिलता? हम तो सब मोबाइल पर पढ़ लेते है? आदि ऐसे कई प्रकार जवाब लोगों के द्वारा दिये जाते है लेकिन वे यह भूल जाते है कि हमारे द्वारा नाममात्र के शुल्क में मंगवाई गई पत्र-पत्रिकाओं से न केवल पत्रिका हमारे घर पहुचेगी बल्कि इनके संचालन में मदद भी होगी।
आज समाज के कार्यक्रमों के बाद केवल नाम छपवाने के लिए लोगों को पत्र-पत्रिकाओं का इंतजार रहता है लेकिन कार्यक्रम के दौरान उनकी कोई पूछ परख करने वाला नहीं है। समाज के पत्रकार वर्ग के बैठने के लिए न कोई व्यवस्था की जाती है और न ही किसी प्रकार का सम्मान। समाज की यह बढ़ती बेरूखी कलम की ताकत का कम करती जा रही है। जिससे केवल और केवल समाज को ही नुकसान है।
पत्र-पत्रिकाऐं एक ऐसा माध्यम है जो नाममात्र के शुल्क में समाज की हर गतिविधि को आम आदमी तक पहुंचाने का कार्य करती है। और आवश्यकतानुसार समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज उठाती है। देश के सभी महापुरूषों और समाज सुधारकों ने भी अपनी आवाज को जनता तक पहुंचाने के लिए पत्र-पत्रिकाओं का ही सहारा लिया। राजाराम मोहन राय से लेकर महात्मा गांधी तक ने कई अखबारों का प्रकाशन किया। जहां पुरा देश अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के महत्व का गुणगान कर रहा है वहीं समाज उसी मीडिया से दूरी बनाता नजर आ रहा है। समाज के बुद्धिजीवी वर्ग, समाज के संगठनों और संस्थाओं को इस बारे में विचार करने की आवश्यकता है।
संपादक
प्रहलाद कुमार प्रजापति